नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के जामनगर जिले में प्रसिद्ध तीर्थ स्थान द्वारका धाम के समीप स्थित है। द्वारका से नागेश्वर की दुरी लगभग 18 किलोमीटर है।नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ओखा तथा द्वारका के बीचोबीच स्थित है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दसवें स्थान पर है।
नागेश्वर पहुंचने के लिए पहले द्वारका पहुंचना पड़ता है।
रेल मार्ग
द्वारका देश के कई प्रमुख शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुवा है।द्वारका स्टेशन अहमदाबाद – ओखा ब्रॉड गेज रेलवे लाइन पर स्थित है। सूरत, वड़ोदरा, गोवा, कर्नाटक, मुंबई तथा केरल जैसे शहरों से रेल सेवा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
द्वारका कई राज्य के राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। द्वारका के आसपास के शहरों से गुजरात राज्य परिवहन सेवाएं प्रदान करती है।यहाँ आसानी से नियमित अंतराल पर बसें मिल जाती हैं। निजी ट्रेवल कंपनी द्वारा द्वारका यात्रा पैकेज उपलब्ध रहता है।
हवाई मार्ग
द्वारका का निकटतम घरेलू हवाई अड्डा जामनगर में स्थित है। जो लगभग 135 किमी. की दूरी पर स्थित है। जामनगर हवाई अड्डे से टैक्सी द्वारा द्वारका पहुँच सकते हैं। मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जामनगर के लिए नियमित हवाई सेवा उपलब्ध हैं।
द्वारका से द्वारका नगपालिका और निजी ट्रेवल की बस सेवा उपलब्ध है।बस का किराया रु.१००/-पड़ता है।द्वारका से ऑटो और कार भी मिलजाती है। द्वारका नगपालिका बस का टिकट बुकिंग काउंटर तीन बत्ती चौक में स्थित है और निजी ट्रेवल के ऑफिस द्वारकाधीश मंदिर के सामने के कॉम्प्लेक्स में स्थित है।
रुख्मिणी मंदिर ,नागेश्वर मंदिर ,गोपी तलाव अंत में बेट द्वारका।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा
एक ‘सुप्रिय’ नामक वैश्य था, जो बड़ा ही धर्मात्मा और सदाचारी था। वह शरीर पर भस्म, गले में रुद्राक्ष की माला डालकर भगवान शिव की भक्ति करता था। सुप्रिय शिवजी की पूजापाठ किये बिना भोजन नहीं करता था। सुप्रिय हमेशा शिव आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था।उसने अपने बहुत से परिजन और साथियों को भी शिव जी का भजन-पूजन सिखला दिया था। सुप्रिय के संगत में रहकर उसके सभी साथी हमेशा शिव आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहते थे।
दारुका नाम का एक प्रसिद्ध राक्षस था।उसने बहुत से राक्षसों को अपने साथ लिया और यज्ञ आदि शुभ कर्मों को नष्ट करता हुआ सन्त-महात्माओं का संहार करने लगा।सुप्रिय की शिवभक्ति का समाचार दारुका को पता चला तो वह बहुत क्रोधित हो गया।सुप्रिय की शिव भक्ति उसे किसी भी प्रकार अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयास किया करता था कि सुप्रिय की पूजा-अर्चना में बाधा पहुँचे। एक दिन सुप्रिय नौका पर सवार होकर अपने साथियो के साथ कहीं जा रहा था। इस बात की खबर दारुका राक्षस को लगी। उसने मौका देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया और नौका में सवार सभी यात्रियों को अगवाह कर अपने राज्य में ले जाकर कारागार में डाल दिया।सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार शिव आराधना, पूजन करने लगा। कारागर के अन्य कैदी और अपने साथियो को भी वह शिव आराधना का पाठ पढ़ाने लगा और उन्हे शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा।
अपने सेवकों द्वारा यह समाचार दारुका ने सुना तो वह भयंकर क्रोधित होकर कारागर में आ पहुँचा।सुप्रिय उस समय दोनों आँखें बंद किए शिवजी के ध्यान में मग्न था। सुप्रिय की यह मुद्रा देखकर अत्यन्त कठोर स्वर में राक्षस चिल्लाया। उसके चिल्लाहट से भी सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई।यह देख कर दारुक राक्षस क्रोध से एकदम लालपिला हो गया।उसने तत्काल अपने सेवको को सुप्रिय तथा अन्य सभी साथियो को मार डालने का आदेश दे दिया। फिर भी सुप्रिय जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।वह ध्यान मुद्रा में एकाग्र होकर अपनी और अन्य साथियो की मुक्ति के लिए शिवजी से प्रार्थना करने लगा। उसकी प्रार्थना सुनकर शिवजी तत्काल उस कारागर में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।शिव ने स्वयं पाशुपतास्त्र लेकर दारुका का और उसके सेवको के साथ सारे अस्त्र-शस्त्र को नष्ट कर दिया।वैश्य सुप्रिय ने उस ज्योतिर्लिंग का सेवा भाव से दर्शन और पूजन किया और शिवजी से इसी स्थान पर स्थित होने का आग्रह किया। इस प्रकार ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाये और माता पार्वती भी ‘नागेश्वरी’ के नाम से विख्यात हुईं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग Youtube Video
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